प्रशासन की सतर्कता के बावजूद मजदूरी को मजबूर बच्चे
भास्करन्यूज | ब्यावर
स्कूलोंमें प्रवेश योग्य बच्चों को भले घर-घर ढूंढकर प्रवेश दिलाने का अभियान चल रहा हो लेकिन एेसे कई बच्चे है, जिन पर शिक्षा विभाग की नजर है आैर ही श्रम विभाग की। हाल यह है कि इन बच्चों का बचपन भी हुकूम हुजूरी में ही बीत रहा है। इस उम्र के बच्चों के हाथों में जहां सरकार खिलौने किताबे थमानें का अभियान चला रही है। वहीं शहर में अधिकांश दुकानों पर बाल श्रमिक काम कर रहे हैं। जिस पर प्रशासन की कभी नजर नहीं पड़ी है। इस काम को देखने वाले विभाग के अधिकारी भी बाल श्रम को रोकने में कुछ नहीं कर पा रहे है।
खुलेआम बाल श्रम : ताज्जुबयह है कि प्रमुख चौराहों पर खुले आम बाल श्रम को विभागीय अधिकारियों ने भी अनदेखा कर दिया है। रिकॉर्ड में बाल श्रम पर पूरी तरह अंकुश लगा है। जबकि हकीकत में अकेले शहर में ही सैकड़ों बच्चे काम करते देखे जा सकते है। होटल, रेस्टोरेंट, खाद्य पदार्थो की दुकानों सहित बड़े प्रतिष्ठानाें पर भी बड़ी संख्या में आसपास के गांवों के बच्चे मजदूरी कर रहे है।
यहहै बाल श्रम अधिनियम : श्रमविभाग के अधिकारियों के अनुसार बाल श्रमिक वह है, जिसने 14 वर्ष की आयु पूरी नहीं की हो। बाल श्रम(प्रतिषेध विनियमन) अधिनियम 1985 के अनुसार जोखिमपूर्ण व्यवसाय पर बाल श्रमिक प्रतिबंधित है। यदि कोई बाल श्रमिकांें को नियोजित करता पकड़ा जाता है तो दोष साबित होने पर दस हजार रुपए का जुर्माना तीन माह की कैद या दोनों हो सकती है। दूसरी बार पकड़े जाने पर बीस हजार रुपए का जुर्माना तीन माह की सजा का प्रावधान है। गैर जोखिमपूर्ण कार्य में बाल श्रमिकों को नियाेजित करने पर दस हजार रुपए का जुर्माना तीन माह की सजा का प्रावधान है। इसके बावजूद शहर में प्रमुख चौराहों सार्वजनिक स्थलों पर बच्चे काम करते देखे जा सकते है।
बिनाश्रम निरीक्षक के कैसे हो कार्रवाई : श्रमविभाग कार्यालय में श्रम निरीक्षक का पद लम्बे समय से रिक्त चलने के कारण शहर की दुकानों पर संचालकों की ओर से बाल श्रम करवाने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। आलम यह है कि कार्यालय में केवल श्रम अधिकारी ही नियुक्त है। जिन्हें अजमेर का भी पद भार सौंपा हुआ है। जिस कारण श्रम अधिकारी के.एस.झीबा दोनों कार्यालयों का कार्य निपटाने में व्यस्त रहते है। इस मामले के बारे में पूछने पर श्रम अधिकारी ने अवकाश पर होेने की बात कहीं।
फिरकैसा प्रवेशोत्सव : शिक्षाविभाग हर साल नए शैक्षिक सत्र में नवप्रवेशित बच्चों को तिलक लगाकर ढोल ढमाकों के साथ उनके शाला प्रवेश का प्रचार प्रसार करता है। होटलों पर हुकूम हुजूरी कर रहा बचपन सरकार के प्रवेशोत्सव पर भी सवाल उठा रहा है। इस उत्सव का उद्देश्य ऐसे बच्चों को विद्यालयों में नामांकित करवाना है, जो कभी स्कूलों की दहलीज तक नहीं गए। लेकिन हर तीसरी होटल ढाबों पर बाल श्रमिकों की मौजूदगी प्रवेशोत्सव का मुंह चिढ़ा रही है। इसी का नतीजा है कि ब्लॉक में ड्राप आउट बच्चों की संख्या 80 है। जिसमें 50 लडके 30 लडकी शामिल है।
^जवाजा ब्लॉक में कुल 80 बच्चे ड्राॅप आउट है। जिसमें 50 बालक 30 बालिकाएं शामिल है। प्रवेशोत्सव कार्यक्रम के तहत इन बच्चों को स्कूलों से जोड़ने का प्रयास किया गया है। जहां प्रथम चरण में कोई नहीं जुड़ा है। द्वितीय चरण में बच्चों को जोड़ने का प्रयास किया जाएगा। दर्शनामाथुर, प्रवेश प्रभारी, जवाजा ब्लॉक